चंचल-चपत , तेरा यौवन...,
मोर का नाँच , फीका लागे ।
वर्ण तेरा ,गोरा इतना...,
ताज , मुझको मैला लागे ।
जुल्फे तेरी , इतनी घनेरी...,
नभ में तारे भी कम लागे ।
नयन तेरे हैं मस्त नशीले...,
मय का नशा न मुझपर साजे ।
गालों पर तेरे इतनी लाली....,
भोर का सूरज , फीका लागे ।
होंठ तेरे हैं इतने रसीले....,
अमृत ना मुझको साजे ।
मस्त-मस्त गदराया यौवन...,
रति का योवन , फीका लागे ।
तेरी काया की क्या तारीफ़ करूं...?
" मैं वितरागी " के शब्द ना इससे आगे ।
// मैं वितरागी //*******************
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