कहता कोई.....
मैं घमंडी......
कोई कहता.....
मुझे तमीज नहीं ।
मानता " मैं वितरागी " नहीं महान ,
चाहूँ अपना थोडा सा अपमान ,
क्यों डरते हो करो मेरा अपमान ?
" दो जून रोटी कमाने वाले गरीब " का करते हो ,
मैं भी तन का गरीब ।
मेरा भी करो अपमान ।।
" इबादतखाने पड़े कोढ़ी " का करते हो ,
मैं भी मन का कोढ़ी ।
मेरा भी करो अपमान ।।
" दर पे आये फकीर " का करते हो ,
मैं भी दिल का फकीर ।
मेरा भी करो अपमान ।।
" बूढ़े माँ बाप " का करते हो ,
मैं नहीं रहूँगा जवान ।
मेरा भी करो अपमान ।।
मुझे बोलने की तमीज नहीं ,
हूँ भी बड़ा घमंडी ,
चोरों की तरह लिखता हूँ ।
गुण मुझे खुदी में दिखे ना कोई ,
फिर क्यों नहीं ,
मेरा अपमान करता कोई ?
क्यों डरते हो ?
" मैं वितरागी " नहीं धनवान ,
नही हूँ ! मैं बलवान ,
नही मेरा ! कोई भगवान ,
नही हूँ ! मैं महान ।
हूँ एक ! तुच्छ सा इंसान ,
क्यों नहीं करता मेरा अपमान ।।
कर मेरा अपमान ।
पर कर सम्मान ,
उस " दो जून रोटी कमाने वाले गरीब " का ,
उस " इबादतखाने पर पड़े कोढ़ी " का ,
उस " दर पर आये उस फकीर " का ,
उस " बूढ़े माँ बाप " का ।
वों हैं काबिल तेरे सम्मान के ,
फिर क्यों नहीं करता उनका सम्मान ?
गर नहीं कर सकता उनका सम्मान ,
तो कर " मैं वितरागी " का अपमान ।
// मैं वितरागी //*****************
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