Tuesday, September 17, 2013

मेरे दोस्त

" मैं वितरागी " लिखता जाऊं ,
दोस्तों से आज राग बनाऊं ।

कंचन-कोमल सी रचना बनाऊं ,
अपना छोटा सा नसीब दिखाऊं ।

यशी सी मैं दहाड़ बनाऊं ,
संजय को मैं राजेस दिखाऊं ।

सलिम के स्वेत सा ताज बनाऊं ,
विजय के बड़े हैं राज दिखाऊं ।

रवि की किरन मैं बनाऊं ,
भारती का नरेश कहलाऊं ।

अमरनाथ पे ज्योती जलाऊं ,
अलबेला तरकश मैं पाऊं ।

सागर को सीमा दिखाऊं ,
महेश से आरती कराऊं ।

फोज छोटी पर विजय दिखाऊं ,
गोविन्द से वृन्दा - वन में मधु ! राग लिखाऊं ।

नीरज शशी हरदम दिखाऊं ,
रम्भा से आनन्द राग लिखाऊं ।

मंझरी को पायल पहनाऊ ,
भारती के अंगारो पर नाच दिखाऊं ।

राजपूत को गिरिराज बनाऊं ,
चहल कदमी पे सोना पाऊं ।

कामा का विवेक दिखाऊं ,
दुबे से स्नेह अंकित कराऊं ।

राकेश सुधीर को मैं समझाऊँ ,
कलीम सा उन्हें गौरव दिलाऊं ।

" मैं वितरागी " लिखता जाऊं ,
दोस्तों से आज राग बनाऊं ,
अनुराधा से जाकर छपवाऊं ।
// मैं वितरागी //**************

No comments:

Post a Comment