कौन हूँ ............?
हिन्दू हूँ ...........?
मुस्लिम हूँ ........?
सिख हूँ ...........?
या फिर इसाई हूँ ?
बताएगा कोई ,
जब पैदा हुआ क्या था , मेरा धर्म ?
मौलवी आया......
बोला इसका खतना करो ,
ये मुस्लमान बन जाएगा ।
पंडित आया......
बोला इसे जनेऊ पहनाओ ,
ये हिन्दू बन जाएगा ।
ग्रन्थि आया......
बोला इसे कृपाण थमाओ ,
ये सिख बन जाएगा ।
फादर आया......
बोला इसे क्रास पहनाओ ,
ये इसाई बन जाएगा ।
मैने सबकी सुनी बाते ,
लगी अँधेरी सी रातें ।
बोला क्यों मेरे पीछे पड़े ?
क्यों तुम आपस में लड़े ।
सब धर्म एक समान ,
मैं तो हूँ ! बस इंसान ।।
वो ना माने......
मौलवी बोला , मेरा खुदा महान ।
पंडित बोला , मेरा राम महान ।
ग्रन्थि बोला , मेरा वाहे गुरु महान ।
इसाई बोला , मेरा ईसा महान ।
सबने किये गुणगान ,
बताया अपनों को महान ।।
नही किया इंसान का गुणगान ,
बताया नहीं इंसानियत को महान ।
फिर क्यों मैं ! धर्म ऐसा लूँ मान ?
जिसमें इंसानियत नही महान ।
मानू मैं ! धर्म अपना उसे......
जिसमे " मैं वीतरागी " सिर्फ इंसान ।।
कोई ना बोला.......
सबने उठाया अपना झोला ,
बोले ये तो है तुच्छ नीच इंसान ।
इसने किया हमारा अपमान ,
इसका नहीं हमारे धर्म में काम ।
निकल पड़े सब.....
किसी ओर को तलाशने ,
आये थे जो मुझे बहलाने ।
मैं वीतरागी उनमे चक्कर में न आया ,
इंसानियत को अपना धर्म बनाया ।
अब बारी तेरी.....
वो आयेंगे तेरे पास भी ,
अब तुझ पर है , तू किसे अपनाता है ।
हिन्दू को , मुस्लिम को ,
सिख को , इसाई को ,
या " मैं वीतरागी " के " इंसानियत " को ।।
करूं मैं गुहार ! हे इंसान.....
मान तू ! अपने धर्म को भी महान ।
पर मत कर अपना अपमान...
" इंसानियत " सब धर्मों से है महान ।।
// मैं वितरागी // ***********************
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