Tuesday, September 17, 2013

मेरी हिंदी

मेरी हिंदी ,
प्यारी हिंदी ,
सारे जग से न्यारी हिंदी ।

चाहे लगानी आये ना बिंदी ,
चाहे कहे कोई, चोर चिंदी ।

फिर भी हरपल लिखूँ ,
मेरी हिंदी ,
तेरी हिंदी ।

पर भाषा ना मैं बोलूं ,
किसी के आगे-पीछे ना डोलूँ ।

बार बार मेरे लब बोलें ,
मेरी हिंदी ,
प्यारी हिंदी ।

मात्राओं का ज्ञान नहीं ,
मेरी तरफ किसी का ध्यान नहीं ।

बोलूँ वहीं , मै जाऊँ कहीं ,
मेरी हिंदी ,
न्यारी हिंदी ।

गद्य-पद्य मैं ना जानूं ,
किसी कवि को ना पहचानूं ।

इसको ही बस अपना मानूँ ,
मेरी हिंदी ,
कैसी हिंदी ।

छंद-दोहे का भेद नहीं ,
मुझे लिखने पर खेद नहीं ।

जाऊँ कहीं " मैं वितरागी " गाऊँ वहीँ ,
मेरी हिंदी ,
ऐसी हिंदी ।

सारे जग से न्यारी हिंदी ,
मेरी हिंदी तेरी हिंदी  '
सबसे ऊपर मेरी हिंदी ।
// मैं वितरागी //****************

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